Kommentar
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Äußeres
Auf den Fotos der Handschrift sind 35 Lagen zu erkennen. Deren Anfänge und Mitten liegen auf folgenden Seiten:
Lage |
Anfang mit S. |
Mitte vor S. |
Doppelblätter |
Weggeschnitten vor S. |
Anfang von Kap. |
1 |
|
|
1+ |
2 |
|
2 |
2 |
10 |
4 |
|
1 |
3 |
18 |
22 |
2 |
|
|
4 |
26 |
36 |
5 |
|
2 |
5 |
46 |
54 |
4 |
|
3 |
6 |
62 |
66 |
3 |
62.70 |
4, auf S. 69 |
7 |
70 |
74 |
3 |
74.76 |
5, auf S. 73 |
8 |
78 |
86 |
4 |
|
6 |
9 |
94 |
102 |
4 |
|
|
10 |
110 |
118 |
4 |
|
|
11 |
126 |
134 |
4 |
|
|
12 |
142 |
152 |
5 |
|
|
13 |
162 |
170 |
4 |
|
7 |
14 |
178 |
188 |
5 |
|
|
15 |
198 |
206 |
4 |
|
|
16 |
214 |
222 |
4 |
|
8 |
17 |
230 |
238 |
4 |
|
9 |
18 |
246 |
254 |
4 |
|
|
19 |
262 |
266 |
3 |
264 |
|
20 |
272 |
280 |
4 |
|
10 |
21 |
288 |
296 |
4 |
|
|
22 |
304 |
312 |
5 |
306 |
|
23 |
322 |
330 |
4 |
|
11 |
24 |
338 |
344 |
3 |
346 |
12, auf S. 347 |
25 |
348 |
356 |
4 |
|
13, auf S. 356 |
26 |
364 |
372 |
4 |
|
|
27 |
380 |
388 |
4 |
392 |
|
28 |
394 |
402 |
4 |
|
14.15, auf S. 398 |
29 |
410 |
418 |
4 |
|
|
30 |
426 |
434 |
4 |
|
16 |
31 |
442 |
446 |
2 |
|
|
32 |
450 |
456 |
3 |
|
17 |
33 |
462 |
472 |
5 |
|
18, auf S. 476 |
34 |
482 |
490 |
4 |
|
19 |
35 |
498 |
|
1+ |
498 |
|
21 Lagen haben 16 Seiten = 4 Doppelblätter.
Außerdem
gibt es:
- 5 Lagen von 20 Seiten = 5 Doppelblättern;
-
5 Lagen von 12 Seiten = 3 Doppelblättern;
- 2 Lagen von 8
Seiten = 2 Doppelblättern.
Zu
Lage 1:
Das Foto mit der Urkunde I zeigt fol1v+fol2r, das mit
der Urkunde II fol2v+fol3r. Die Naht ist auf keinem Foto sichtbar.
Seite 1 kann nicht fol3v sein, und Seite 2f kann das zweite Blatt
hinter fol3 sein. Vermutlich ist von 3 Doppelblättern fol3v
leer, fol4 weggeschnitten, fol5r leer, fol5v Seite 1, fol6
weggeschnitten.
Die Seiten oder Spalten haben unterschiedliche Zahlen von Zeilen. Diese sind folgendermaßen verteilt:
Seite/Spalte |
Zeilen |
Lage |
Kapitel |
2 |
22 |
2 |
1 |
3-4 |
26 |
|
|
5-6 |
27 |
|
|
7-8 |
28 |
|
|
9-11 |
27 |
|
|
12 |
28 |
|
|
13a |
33 |
|
|
13b-14a |
34 |
|
|
14b |
35 |
|
|
15-16 |
29 |
|
|
17 |
28 |
|
|
18-19a |
30 |
3 |
|
19b-20a |
31 |
|
|
20b |
32 |
|
|
21 |
34 |
|
|
22 |
36 |
|
|
23a |
30 |
|
|
23b |
29 |
|
|
26 |
22 |
4 |
2 |
27-34 |
25 |
|
|
35-36 |
27 |
|
|
37-38 |
25 |
|
|
39-43 |
27 |
|
|
44a |
18 |
|
|
46 |
23 |
5 |
3 |
47-61 |
25 |
|
|
62-68a |
29 |
6 |
|
68b |
3 |
|
|
69 |
28 |
|
4 |
70a-72a |
29 |
7 |
|
72b |
31 |
|
|
73 |
29 |
|
5 |
74a |
31 |
|
|
74b |
34 |
|
|
75 |
32 |
|
|
76 |
30 |
|
|
78 |
21 |
8 |
6 |
79-93 |
24 |
|
|
94-152 |
25 |
9-12 |
|
153-160a |
27 |
|
|
160b |
10 |
|
|
162 |
21 |
13 |
7 |
163-188 |
24 |
13-14 |
|
189-208 |
25 |
14-15 |
|
209-210 |
24 |
|
|
211a |
23 |
|
|
214 |
26 |
16 |
8 |
215-219 |
29 |
|
|
220 |
30 |
|
|
221a |
33 |
|
|
221b-222a |
34 |
|
|
222b |
37 |
|
|
223-224 |
31 |
|
|
225a |
32 |
|
|
225b |
33 |
|
|
226a |
35 |
|
|
226b |
36 |
|
|
227a-228a |
30 |
|
|
228b |
29 |
|
|
230 |
26 |
17 |
9 |
231-269 |
29 |
17-19 |
|
270 |
13 |
|
|
272 |
22 |
20 |
10 |
273-319 |
25 |
20-22 |
|
320a |
10 |
|
|
322 |
26 |
23 |
11 |
323-346a |
29 |
23-24 |
|
346b |
23 |
|
|
347 |
26 |
|
12 |
348-355 |
29 |
25 |
|
356a |
26 |
|
13 |
356b |
27 |
|
|
357-365 |
29 |
25-26 |
|
366 |
30 |
|
|
367-379 |
29 |
|
|
380-390 |
30 |
27 |
|
391a |
37 |
|
|
391b-392b |
38 |
|
|
394 |
21 |
28 |
14 |
395-397 |
24 |
|
|
398 |
23 |
|
15 |
399-406 |
24 |
|
|
407-410 |
25 |
28-29 |
|
411-422 |
26 |
|
|
423a |
14 |
|
|
426 |
22 |
30 |
16 |
427-447 |
25 |
30-31 |
|
450 |
25 |
32 |
17 |
451a |
29 |
|
|
451b |
28 |
|
|
452a-454a |
29 |
|
|
454b-455a |
28 |
|
|
455b-456b |
29 |
|
|
457a |
28 |
|
|
457b |
30 |
|
|
458 |
29 |
|
|
459a |
37 |
|
|
459b |
36 |
|
|
460a |
37 |
|
|
460b |
36 |
|
|
461a |
28 |
|
|
461b |
30 |
|
|
462 |
25 |
33 |
|
463a |
24 |
|
|
463b-465b |
25 |
|
|
466a |
30 |
|
|
466b-467b |
32 |
|
|
468a |
30 |
|
|
468b-470a |
32 |
|
|
470b |
31 |
|
|
471 |
33 |
|
|
472 |
31 |
|
|
473a |
33 |
|
|
473b-474a |
31 |
|
|
474b-475b |
33 |
|
|
476a |
32 |
|
18 |
476b |
33 |
|
|
477 |
35 |
|
|
478a |
27 |
|
|
478b-479b |
26 |
|
|
480-481 |
28 |
|
|
482 |
22 |
34 |
19 |
483-496a |
25 |
|
|
496b |
19 |
|
|
497 |
25 |
|
20 |
498a |
13 |
35 |
|
Im
allgemeinen wurde gegen Ende der je letzten Lage eines Kapitels enger
geschrieben, so dass die Zahl der Zeilen pro Spalte steigt, von
weniger als 25 bis zu mehr als 35. Im Ganzen kleiner geschrieben
wurden die Kapitel 1, 4f, 8 und 17.
Grundsätzlich wurde
Gleichmäßigkeit angestrebt, zumindest pro Kapitel. Höhere
und gegen Ende einer Lage steigende Zahlen deuten darauf hin, dass
der Schreiber mit einer gegebenen Zahl von Blättern auskommen
musste. In Kap. 2f, 6f und 9-16 (außer 391f) sind es durchweg
nicht mehr als 30 Zeilen.
Die Handschrift enthält zwölf ganzseitige Bilder je vor dem Anfang eines Kapitels auf der letzten Seite einer Lage, und zwar:
Bild |
vor Kap. |
auf Seite |
1 |
1 |
1 |
2 |
2 |
25 |
3 |
3 |
45 |
4 |
6 |
77 |
5 |
7 |
161 |
6 |
8 |
213 |
7 |
9 |
229 |
8 |
10 |
271 |
9 |
11 |
321 |
10 |
14 |
393 |
11 |
16 |
425 |
12 |
17 |
449 |
Jedes
Bild hat eine Überschrift, und zwar:
1.
ሥዕለ፡ቅድስት፡ሐና፡ወኢዮአቄም፡ብእሲሃ፡ወ[መርያም፡ወ]ለታ፡
2.
ሥዕለ፡ቅዱሳን፡አርያ፡ምሳሌ፡ዘከመ፡አብእዋ፡ለእግዝእትነ፡ማርያም፡
ውስተ፡ቤተ፡መቅደስ፡ወኣፈይዋ፡ለዘካርያስ፡ካህን።።
Im
Bild: ሐና፡ወኢዮአቄም፡፡ወአሐቲ፡ድንግል፡ምስሌሆሙ።
ዘካርያስ፡ካህን።
3.
ዘከመ፡ዜነዋ፡ገብርኤል፡ለማርያም፡ትሥብእቶ፡ለዋሕድ፡
4.
ዘከመ፡ሖሩ፡ዮሴፍ፡ወማርያም፡ወሰሎሜ፡እንዘ፡ይጸውሩ፡ሕፃነ፡ወይጐይዩ፡ውስተ፡ብሔረ፡ግብጽ፡
5.
ዘከመ፡ኀደረት፡እግዝእትነ፡ማርያም፡ምስለ፡ፍቁር፡ወልዳ፡ውስተ፡ደብረ፡ቍ
ስቋም፡ምስለ፡ዮሴፍ፡ወሰሎሜ።
Unter
dem Bild: ዘከመ፡አዕረፈ፡ዮሳ፡በትእዛዘ፡አምላክነ።
6.
ዘከመ፡ሰቀልዎ፡ለእግዚእነ፡ማእከለ፡ክልኤ፡ፈያት፡ወዘከመ፡ኀብ
ኡ፡ብርሃኖሙ፡ፀሐይ፡ወወርኅ፡ወዘከመ፡በከዩ፡ማርያም፡ወዮሐንስ።
7.
ሥዕለ፡ቅዱስ፡ዮሐንስ፡ወበርኮሮስ፡ረድኡ፡እንዘ፡ይጽሕፍ፡ዕርገተ፡
እግዝእትነ፡ማርያም፡ኵሎ፡ዘርእየ።
Im
Bild: ወአነ፡በርኮርኮሮስ፡ረድአ፡ዮሐንስ፡ርአኩ፡እንዘ፡የዓርግ፡ሥጋ፡ወ
8.
[ዘከመ፡ገነዛ፡እግዚእነ፡ለእሙ]፡ድንል፡ምስለ፡፲ወ፪፡አርዳኢሁ።
9.
ሥዕለ፡ቅዱስ፡አባ፡ህርያቆስ፡ኤጲስ፡ቆጶስ።
10.
ሥዕለ፡ቅዱስ፡ባስልዮስ፡ኤጲስ፡ቆጶስ።
11.
ሥዕለ፡እግዝእትነ፡ማርያም፡ምስለ፡ፍቁር፡ወልዳ፡ወዘከመ፡ሰአለ
ት፡መበለት፡በእንተ፡ወልዳ።
12.
ሥዕለ፡ቅዱስ፡ዮሐንስ።
1.
Bild der heiligen Anna und ihres Mannes Joachim und ihrer [Tochter
Maria]
2. Bild der Heiligen, Bild [lies አርአያ፡],
Gleichnis, wie sie unsere Herrin Maria in das Heiligtum brachten und
sie dem Priester Zacharias übergaben [lies ወኣወፈይዋ፡]
(Im
Bild:) Anna und Joachim, und eine Jungfrau mit ihnen; der Priester
Zacharias
3. Wie Gabriel der Maria die Menschwerdung des
Einzigen verkündete
4. Wie Josef, Maria und Salome gingen,
während sie das Kind trugen und in das Land Ägypten
flohen
5. Wie unsere Herrin Maria mit ihrem geliebten Sohn auf
dem Berg Qusqwam wohnte, mit Josef und Salome
(Unter dem Bild:)
Wie Yosa auf Befehl unseres Gottes entschlief
6. Wie man unseren
Herrn zwischen zwei Räubern kreuzigte, wie Sonne und Mond ihr
Licht verbargen und wie Maria und Johannes weinten
7. Bild des
heiligen Johannes und seines Jüngers Prochorus, während er
die Auffahrt unserer Herrin Maria schreibt, alles, was er gesehen
hat
(Im Bild:) Und ich, Prochorus [lies በርኮሮስ፡],
Johannes´ Jünger, habe gesehen [lies ርኢኩ፡],
während der Leib der [Gottesgebärerin] auffuhr
8. [Wie
unser Herr seine] jungfräuliche [lies ድንግል፡]
[Mutter einhüllte], mit seinen 12 Jüngern
9. Bild des
heiligen Bischofs Abba Kyriakos
10. Bild des heiligen Bischofs
Basileios
11. Bild unserer Herrin Maria mit ihrem geliebten Sohn
und wie die Witwe für ihren Sohn bat
12. Bild des heiligen
Johannes
Die ersten Seiten der auf ein Bild folgenden Kapitel (außer 11, zusätzlich 19) haben Überschriften ohne Linie, und zwar:
Kap. |
Seite |
Überschrift |
1 |
2 |
Lesung am 1. Ginbot (26.4.) |
2 |
26 |
Lesung am 3. Tahsas (29.11.) |
3 |
46 |
Lesung am 29. Mäggabit (25.3.) |
6 |
78 |
Lesung vor Qusqwam, zur Tröstung |
7 |
162 |
Lesung am 6. Hidar (2.11.) |
8 |
214 |
Lesung am 15. Nahase (8.8.) |
9 |
230 |
Lesung bei der Kreuzigung |
10 |
272 |
Lesung am 16. Nahase (9.8.) |
14 |
394 |
Lesung am 21. Säne (15.6.) |
16 |
426 |
Lesung am 21. Tirr (16.1.) |
17 |
450 |
Lesung am Marienfest und am Sonntag |
19 |
482 |
Lesung am 24. Hidar (20.11.) |
In
Kapitel 9 sind weitere Zeitangaben links neben die Spalte
geschrieben, und zwar:
237b16 Mittagszeit
241b17 das von
der Zeit der 9. Stunde
245b17 das von der Abendzeit
250a20
das von der Auferstehung
Auf S. 94 und 109 stehen kleine Zahlzeichen für 2, auf S. 110 für 3, doppelt über- und unterstrichen, je rechts und links oben. Mit diesen Seiten beginnt bzw. endet die 2. und 3. Lage von Kapitel 6.
Inhalt
Die
Texte der Handschrift sind zum größten Teil Übersetzungen
aus dem Griechischen oder Arabischen.
Positive Beweisstücke
für eine Übersetzung aus dem Griechischen wären:
-
"aksumitische" Verwendung von hallo
und
kona;
-
unabhängiges Impf. für Vergangenheit;
-
"aksumitische" Verwendung des Ger.
Beweisstücke
für eine Übersetzung aus dem Arabischen wären:
-
Verbindungen von kona
mit
dem Impf. oder Perf.;
- "Hal"
mit
wa-Pron.,
wo ýénza
allein
korrekt wäre;
- überschüssiges
wa-,
wo
im Arabischen
fa-
korrekt
wäre.
Beweisstücke
für eine Abfassung auf Äthiopisch wären im
Aksumitischen unübliche Wortstellungen wie za-Y
X statt der Constructusverbindung X-a
Y
oder Nachstellung des Verbs.
Kapitel 1
Buch
der Geburt der Maria
Protevangelium Jacobi
original
griechisch
Parallelen T 45,7; Orient. 692,4 (WrBM S. 164);
Orient. 604,10 (WrBM S. 144)1
CANT
S. 25-29 50.,
S. 28 Versio
aethiopica (BHO
616).
ediert CSCO 39 S. 3-192
Übersetzung
BLM S. 122-142
Kapitel 2
Predigt
von Maria, wie sie geboren wurde, wie man sie in den Tempel
hineinbrachte und wie man sie dem Josef übergab und wie sie zu
Zacharias´ Haus zu seiner Frau Elisabet ging
erst parallel
zum Protevangelium Jacobi, dann zu Lk 1,26-2,39 und Mt
1,18-2,12
original griechisch
Parallelen
T 45,2; Orient. 692,2 (WrBM S. 164); Orient. 604,3 (WrBM S. 143)
Kapitel 3
Predigt
über das, was Gabriel der Maria verkündigte
original
äthiopisch
Parallelen T 45,5; Orient. 604,8 (WrBM S.
144)
Übersetzung BLM S. 102-116
Kapitel 4
Erzählung,
wie Maria schwanger wurde
original äthiopisch
Parallelen
T 45,6; Orient. 604,9 (WrBM S. 144)
Kapitel 5
Predigt
von Johannes, vom Vater
original äthiopisch
keine
Parallele
Kapitel 6
Predigt,
Geschichte der Weihe der Kirche, die als "des Herrn
Handausstrecken" bekannt ist
original arabisch3
Parallele
Orient. 604,2 (WrBM S. 143)
ediert POr 49,2
Übersetzung
BLM S. 81-101 (von S. 107-135)
Kapitel 7
Predigt
von Theophilos von Alexandria
original
griechisch
Parallelen T 45,1; Orient. 692,1 (WrBM S. 164);
Orient. 604,1 (WrBM S. 143)
CANT S. 34 56.,
Versio
aethiopica.
CANT
S. 73 95.
Vita
Virginis Iacobita
(syriace).
Cf.:
ROC
15 (1910), p. 125-132
Übersetzung BLM S. 61-80 (von S.
173-197)
Kapitel 8
Geschichte
der Maria und ihres Weggangs
original
griechisch
Parallelen Abbadie 128 (CRNA S. 47, 50);
Orient. 604,4 (WrBM
S. 144)
CANT
S. 91 151.
Libri Iohanni apostolo suppositi, breuior narratio.
Notae:
(b)
Epitome
est dormitionis superioris.4
ediert
CSCO 342 S. 85-1005
Übersetzung
BLM S. 152-167
Kapitel 96
Predigt,
die Kyriakos von Bahnasā hielt, über das Weinen und Klagen
der Maria
original arabisch
Parallelen Abbadie 91(CRNA S.
453f 57
I);
Orient. 604,16 (WrBM S. 145)
CANT
S. 53f 74.,
Recensio aethiopica.
ediert
und übersetzt M.-A. van den Oudenrijn7
s.
LThK² III 1225ff Nr. 13.19; RRALm VIII (1900) S. 209 §7
Kapitel 10
22.
Ermahnung. Kyrillos von Jerusalem sagte sie, über die Auffahrt
des Leibes unserer Herrin
original arabisch
Parallelen
T 45,13; Orient. 604,13 (WrBM S. 144)
CANT S. 91 152.
Cyrilli Hierosolymitani homilia.
ediert
CSCO 351 S. 1-338
Kapitel 11
Predigt,
die Kyriakos von Bahnasā hielt, am Tag der Auffahrt der
Maria
original arabisch
Parallele
Orient. 604,14 (WrBM S. 145)
CANT
S. 91 153.
Homilia Cyriaci a Behnesa.
Notae: (a)
Homilia
haec uersio aethiopica est homiliae arabicae (n. 147)9
(b)
Homiliae
Cyrilli (n. 152) et Cyriaci arcte connexae sunt et ab eodem archetypo
pendere censentur. ... (CSCO 343), p. x sq.
ediert
CSCO 351 S. 34-5510
Kapitel 12
Predigt,
die erzählt, wie die Geschichte der Maria gefunden
wurde
original
griechisch; das aus dem Syrischen
Parallelen T 45,12; Orient.
604,5 (WrBM
S. 144)
CANT
S. 84 123.
Libri VI de dormitione B. V. Mariae (BHO
620).
Übersetzung BLM
S. 143-151
Kapitel 13
Geschichte
der Maria und ihres Weggangs
original
griechisch; das aus dem Syrischen
Parallele Orient. 604,6 (WrBM
S. 144)
CANT
S. 90f 150.
Liber Iohanni apostolo suppositus de dormitione B. V. Mariae (BHO
639).
Nota:
Dormitio
haec uersio aethiopica est textus syriaci, Libri
VI de dormitione
(n.
123)
CANT S. 84 123.
Libri VI de dormitione B. V. Mariae (BHO
621-625).
ediert
CSCO 39 S. 23-49
Übersetzung
BLM S. 168-201
Kapitel 14
Der
erste Kirchbau
original arabisch
Parallelen
T 45,8; Orient. 692,5 (WrBM S. 164); Orient. 604,11 (WrBM S.
144)
stark gekürzte Version von Kapitel 15, aus dem Synaxar
(vgl. POr 1,5 S. 645-649)
Kapitel 15
Predigt
von Basileios von Kaisareia über den Bau der Kirche der
Maria
original
arabisch
Parallelen
T 45,9; Orient. 692,6 (WrBM S. 164); Orient. 604,12 (WrBM
S. 144)
Kapitel 16
Predigt
von Maria, die Johannes von Äthiopien hielt
von Metropolit
Johannes, Anfang 14. Jh.
original griechisch 428a20-444a3 (außer
432a14-b9); original arabisch 444b1-447a12; Rest original äthiopisch
oder arabisch
Parallelen T 45,3; Orient. 692,3 (WrBM S.
164)
CANT S. 92 156.
Metropolitae
Iohannis homilia (partim).
teilweise
ediert CSCO 351 S. 56-61 (~ 437b8-444a3)11
428a-444a
steht inhaltlich Pseudo-Kyrillos In
Mariam virginem
(Orientalia
70,1) am nächsten
Kapitel 17
Die
Zeichen der Maria (1-15)
original arabisch;12
ab
dem 11. Zeichen original äthiopische Einschübe (v.a. Gebete
mit wenig Bezug zum Wunder: im 11. 466b14-467a14.b19ff.28-32; im 12.
469b14-24.470a7-20;
im 13. 471b15-472a31; im 14. 473b8-31; 15. Zeichen13)
Parallelen
Abbadie 91 (CRNA S. 453f 57
II;
Inhaltsangabe CLMM S. 70); (15) T 45,4
s. CLMM
Parallel sind:
Zeichen |
CRNA 57 |
1 |
7 |
2 |
8 |
3 |
3 |
4 |
6 |
5 |
1 |
6 |
2 |
7 |
4 |
8 |
5 |
Zeichen |
BMM Nr. |
BMM S. |
1 |
86 |
305f |
2 |
29 |
94ff |
3a |
10 |
35f |
3b |
38 |
138f |
4 |
102 |
332f |
5 |
30 |
98f |
8 |
101 |
330f |
9 |
70 |
268f |
10 |
71 |
270ff |
13 |
22 |
68f |
14 |
72 |
275 |
15 |
73 |
276ff |
Kapitel 1814
Buch
der Predigt des Engels
’Afnin
original
äthiopisch
keine Parallele
Kapitel 19
Predigt,
die von Jerusalem ausging, ...
original äthiopisch;
original arabisch 484b20 – 486a21
keine Parallele
484ff
ist eine Version der Geschichte der keuschen Susanna mit Michael
statt Daniel.
Übersicht
Nr |
Seite |
Parallele |
ediert |
übersetzt |
original |
1. |
2 |
CSCO 39 S. 3-19; T 45,7 |
x |
x |
G |
2. |
26 |
T 45,2 |
|
|
G |
3. |
46 |
T 45,5 |
|
x |
|
4. |
69 |
T 45,6 |
|
|
|
5. |
73 |
|
|
|
|
6. |
78 |
POr 49,2 |
x |
x |
A |
7. |
162 |
T 45,1 |
x |
x |
G |
8. |
214 |
CSCO 342 S. 85-100 |
x |
x |
G |
9. |
230 |
s. van den Oudenrijn, Gamaliel |
x |
x |
A |
10. |
272 |
CSCO 351 S. 1-33; T 45,13 |
x |
x |
A |
11. |
322 |
CSCO 351 S. 34-55 |
x |
x |
A |
12. |
347 |
T 45,1 |
|
x |
G |
13. |
356 |
CSCO 39 S. 23-49 |
x |
x |
G |
14. |
394 |
T 45,8 |
|
|
A |
15. |
398 |
T 45,9 |
|
|
A |
16. |
426 |
CSCO 351 S. 56-61; T 45,3 |
|
|
|
17. |
450 |
s. CLMM |
|
x |
A |
18. |
476 |
|
|
|
|
19. |
482 |
|
|
|
|
20. |
497 |
|
|
|
|
Meine
Annahme eines griechischen oder arabischen Originals basiert auf den
oben genannten sprachlichen Gründen. Kapitel ohne eine solche
Angabe halte ich für original äthiopische
Kompositionen.
Also ist aufgrund der Syntax und des Wortschatzes
die originale Sprache wahrscheinlich:
- Griechisch für die
Kapitel 1f, 7f und 12f;
- Arabisch für die Kapitel 6, 9-11,
14f und 17;
- Äthiopisch für die Kapitel 3-5 und 18f.
Geschichte
Endkolophon
und Urkunde I sind gemäß der Synchronie von Matthäus
und Bartolomäus zwischen 1398 und 1408 geschrieben worden. Zu
dieser Zeit passen auch der Stil der Schrift und der Bilder. Die
jüngsten datierbaren Texte sind die Kapitel 6 und 10, deren
Übersetzung laut S. 319 von Abba Salāmā
besorgt
wurde. Demnach muss der Grundstock nach 1350
geschrieben
worden sein.
Die
innere Geschichte der Handschrift ergibt sich aus den Kolophonen, dem
Alter und der Herkunft der Kapitel, den Lagen und den Bildern.
Ein
Zwischenkolophon mit einer Vorschau bis zu den Zeichen der Maria am
Ende von Kap. 13 besagt, dass Sinn der Handschrift
die
Sammlung aller erreichbaren Prosatexte über Maria in
biografischer Folge war: "Die
Geschichte der heiligen Maria ist ... vollendet worden. ... Der aber
diese Marienpredigten schreiben ließ von ihrer Geburt bis zu
ihrer Auffahrt und nach ihrer Auffahrt die Weihe ihrer Kirche und
ihre Zeichen (deiner Magd Batra
’Āron),
der Sünder ... dies alles arbeitete er wegen der Liebe der
Maria: sooft er ihre Geschichte hörte, sammelte er ihre ganze
Predigt."
(in 392b10-28)
Die Zeichen der Maria in Kap. 17 waren damals
eine Neuerscheinung, aber der Text ist, wie die Schreibfehler zeigen,
Kopie einer äthiopischen Vorlage. Dieses Kapitel hat einen
Zwischenkolophon auf S. 460f nach dem achten Zeichen. Vielleicht
wurden die danach in Ägypten
angefügten
Zeichen aus einem anderen Buch kopiert. In Lage 33 sparte der
Schreiber soviel Platz, dass es für die Einfügung von Kap.
18 ausreichte. In der nächsten Lage kam er dann so aus, dass
eine Seite für einen Endkolophon frei blieb.
Kap. 18 ist
von jemandem geschrieben, der durch die Handschrift seine Verehrung
für ’Afnin
verbreiten
wollte. Wie in Kap. 19 geht es um Engelskult.
Kap.
19 ist wieder von derselben Hand wie Kap. 1-17 und scheint ziemlich
neu. Mindestens die Geschichte 484b20-486a21 ist aus dem Arabischen
übersetzt. Sonst bekennt der Schreiber in den Kolophonen der
Kapitel seine Verehrung Marias. In diesem Kapitel werden die
Wesensgleichheit gar nicht und Christus (488a9f; 492b21; 496a15f) und
Maria (487b4f; 494b19f) nur beiläufig erwähnt. Also wurde
er vermutlich bestochen, dieses monarchianische Dokument in ein
orthodoxes Buch einzuschmuggeln, um es so zu verbreiten.
Die
Handschrift hat 35 Lagen zu 4 bis 10, meist 8 Blättern. Jedes
Kapitel außer 4f, 12f, 15 und 18 beginnt auf der ersten Seite
einer Lage. Alle 12 Bilder sind je auf der letzten Seite einer Lage.
Der Schreiber ließ also je eine Rückseite für ein
Bild frei.
An der Zahl der Zeilen
pro
Spalte ist zu sehen, dass Kap. 1 nachträglich angefügt ist.
Der Schreiber musste mit den 2 Lagen auskommen wie für Kap. 8
mit einer. In Kap. 2 steckt die Überschrift ("die
Geschichte der heiligen Maria", in 26a14ff), und für eine
Vita von der Geburt an wäre Kap. 1 nicht nötig.
Die
ersten fünf Bilder passen zu dem ihnen folgenden Text.
Die
Bilder 6-12 zeigen:
6: Jesu Kreuzigung
7: Johannes mit
Prochorus
8: Mariä Begräbnis
9: Kyriakos
10:
Basileios
11: Maria mit Witwe
12: Johannes
Bild 1
passt auch zu Kap. 2. Bild 6 gehört zu Kap. 9, Bild 8 zu 8, Bild
7 zu 10, wo Prochorus erstmals vorkommt. Kap. 8 sollte also zwischen
9 und 10. Bild 11 gehört zu Kap. 17, und der Johannes auf Bild
12 ist der Metropolit aus Kap. 1615.
Kap. 17 musste ans Ende, Kap. 16 davor, das dazu gehörige Bild
darum hinter das Kapitel.
Die innere Geschichte lässt sich
folgendermaßen zusammenfassen: anfangs sind Kap. 2f, 6f und
9-13 vorhanden, 14f und 17 bekannt. Diese lässt Gabra
Krəstos
kopieren
und bemalen. Dann werden an teils wenig passenden Stellen die Kapitel
1, 4f, 8 und 16 eingefügt und Bild 2 und 12 gemalt. Der erste
Schreiber überlässt die Handschrift jemandem,
der die Lage 34 mit einer Predigt über den Engel ’Afnin
füllt.
Auf einer weiteren Lage fügt der erste Schreiber eine Predigt
an, in der die Gottesmutter als solche nicht genannt wird. Diese
Handschrift von 19 Kapiteln wird von der Prinzessin Batra
’Āron
erworben.
Sie lässt auf der letzten vorhandenen Seite und auf der ersten
einer weiteren Lage einen Kolophon anfügen
und
den Namen des
Auftraggebers
durch "deine Magd Batra
’Āron"
ersetzen.
Wegen ihres ähnlichen Alters zu beachten sind die Handschriften T 45, Abbadie 91 (CRNA 57) und Orient. 692 (WrBM S. 164f) aus dem 15. Jh. Zu T 45 siehe die Übersicht; Abbadie 91 enthält Parallelen zu den Kapiteln 9 und 17, Orient. 692 zu 1f, 7 und 14ff.
Orient. 692 |
T 45 |
Betlehem |
1 |
1 |
7 |
2 |
2 |
2 |
3 |
3 |
16 |
4 |
7 |
1 |
5 |
8 |
14 |
6 |
9 |
15 |
7 |
11 |
|
T 45 sieht also aus wie eine Erweiterung von Orient. 692.
Orient. 604 (WrBM S. 143ff) von 1716-1721 enthält Parallelen zu den Kapiteln 1-15 außer 5, und zwar:
1 |
10 |
2 |
3 |
3 |
8 |
4 |
9 |
6 |
2 |
7 |
1 |
8 |
4 |
9 |
16 |
10 |
13 |
11 |
14 |
12 |
5 |
13 |
6 |
14 |
11 |
15 |
12 |
In Orient. 604, 1-16 sind also noch die Kapitel 7 und 15 hinzugefügt.
Abbadie 158 (CRNA S. 449-452 56) aus dem 18. Jh. enthält Parallelen zu den Kapiteln 1-16 außer 4f und 8, und zwar:
1 |
5 |
2 |
6 |
3 |
8 |
6 |
2 |
7 |
1 |
9 |
9 |
10 |
15 |
11 |
16 |
12 |
4 |
13 |
11 |
14 |
13 |
15 |
14 |
16 |
3 |
In Abbadie 158 sind also noch die Kapitel 7, 10, 12 und 17 hinzugefügt.
Die Handschrift Betlehem scheint also die älteste der marianischen Sammlungen zu sein, die im 15. Jh. von Orient. 692,1-7 und T 45, im 18. Jh. von T 7216, Orient. 604 und Abbadie 158 vertreten werden. Von diesen ist Betlehem als Vita konzipiert, Orient. 692, T 45, T 72 und Orient. 604 als Lektionar zu Marienfesten im Jahreskreis.
1Nach Parallelen habe ich auch in den äthiopischen und arabischen Synaxaren in der POr gesucht: 6.3., 24.3., 3.4., 13.4. (arab. nichts), 21.10., 16.12; zum 21.5., 27./29.7. und 1.9. arab. kurz, äth. keine Edition. Die Texte in den Synaxaren sind wesentlich kürzer, die arabischen noch kürzer als die äthiopischen. Keiner von diesen scheint eine direkte Quelle zu enthalten. Zum Inhalt von Orient. 692 (WrBM S. 164ff) und Orient. 604 (WrBM S. 143ff) s.a. BLM S. LXIIf Nr. 1-19
2angeblich aufgrund eines Ms. aus dem 13. Jh.!
3vgl. G. Graf, Geschichte der christlichen arabischen Literatur I, Vatikan 1944, S. 464
4Kap. 13
5s. CSCO 343, S. X
6so stark korrigiert, dass dabei ein anderer Text vorgelegen haben muss
7Gamaliel, Freiburg 1959
8s. CSCO 343, S. Xf
9ein Ms., von 1719
10s. CSCO 343, S. X
11s. CSCO 343, S. XI
12nach CLMM (S. 155) zwei ältere arabische Handschriften
13s. vorn stehendes Ger. 474a10.b4.28; 475a7.28.29.b19 und regelkonform verwendetes hallo 474a6.30; 475a11; aber mit Verwendung einer kürzeren arabischen Vorlage, s. die Anmerkungen
14kaum Korrekturen, auch nicht grammatisch notwendige; wohl Autograph
15vgl. Bild 7 und die Bischöfe auf Bild 9f
16s. E. Hammerschmidt, Äthiopische Handschriften vom Ţānāsee 2, Wiesbaden 1977, S. 77-82